क्रिसमस के बाद अब दुनिया भर में नए साल के जश्न का माहौल है. मंगलवार की रात 2024 के विदाई और बुधवार की सुबह 2025 के आमद से शुरू होगी. देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में लोग हैपी न्यू ईयर कहने के लिए बेसब्री से आगामी एक जनवरी का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन सभी के मन में सवाल यह है कि मुस्लिम धर्म के लोग नया साल कब मनाते हैं.इस्लाम में नया साल कब शुरू होगा और कैसे मनाया जाता है, मुस्लिम समाज के लोग भी हैप्पी न्यू ईयर कह लोगों को नए साल की बधाई देते हैं?

इस्लाम में धार्मिक रूप से स्वीकृति केवल दो उत्सव मनाने की है. एक ईद-अल-फितर और दूसरा ईद-उल-अजहा. इसे पैगंबर मोहम्मद साहब और उनके साथियों के साथ मनाए जाने वाला त्योहार है.

इस्लाम में नवाचार यानी नई चीज पैदा करने को बिदत कहा जाता है, जिसको करने की सख्त मनाही है. इसीलिए नये साल के जश्न की बात दूर की है, मुस्लिम समाज ईसाई उत्सव भी नहीं मनाते हैं. इतना ही नहीं कई मुस्लिम पैगंबर मोहम्मद साहब के जन्मदिन यानी ईद-मिलादुन-नबी को उत्सव के तौर पर मनाने से इनकार करते हैं. यही वजह है कि दुनिया के तमाम इस्लामी देशों में नये साल का जश्न फीका सा नजर आता है.

इस्लाम में चांद से चलता है कैलेंडर

इस्लामी नव वर्ष हिजरी या मुस्लिम चंद्र कैलेंडर के पहले महीने में मनाया जाता है. हालांकि, अधिकांश इस्लामी देश सौर ग्रेगोरियन कैलेंडर द्वारा अपने क्रियाकलाप यानि कामकाज करते हैं, लेकिन अपने धार्मिक उत्सवों और हज यात्रा जैसे अरकान (अनुष्ठानों) की तारीखों की गणना के लिए चंद्र कैलेंडर का उपयोग किया जाता हैं. इसका सीधा सा मतलब है कि इस्लामिक देशों में चांद के जरिए तारीख की गणना और त्योहार मनाने का काम किया जाता है.

मुस्लिम कैलेंडर में छोटी होती है साल

ग्रेगोरियन कैलेंडर की पहली तारीख यानी 1 जनवरी से शुरू होती है, जिसको न्यू ईयर (New Year) कहा जाता है. ठीक उसी तरह से हिंदू नववर्ष के कैलेंडर नव संवत्सर (Vikram Samvat) को नववर्ष के रूप में मनाया जाता है. इस्लाम में नए साल की शुरुआत हिजरी से पहले महीने यानि मुहर्रम के माह से शुरुआत होती है.

हिजरी चंद्रमा की चाल पर निर्भर करता है, जिसके चलते मुस्लिम कैलेंडर में महज 354 या 355 दिन होते हैं, जो इसे 365 दिनों वाले सौर ग्रेगोरियन कैलेंडर (लीप वर्ष में 366 दिन) से लगभग 11 दिन छोटा बनाता है. इसके चलते मुस्लिम त्योहार हर साल अलग-अलग ग्रेगोरियन कैलेंडर के लिहाज से मनाए जाते हैं.

ग्रेगोरियन कैलेंडर जूलियन कैलेंडर का एक सुधार था.जूलियस सीजर ने लगभग 46 ईसा पूर्व में स्थापित किया था. जिसे जूलियन कैलेंडर कहा जाता है. यह सूर्य के चक्र पर आधारित था. इसके बाद 24 फरवरी 1582 को पोप ग्रेगरी ने कैलेंडर को सूर्य के साथ समन्वित किया, जिसे पोप बुल इंटर ग्रेविस मास ने स्थापित किया. इस तरह वह कैलेंडर अस्तित्व में आया, जिसे हम सभी प्रयोग करते हैं. इसे अंग्रेजी कैलेंडर के नाम से भी जाना जाता है, जिससे साल की शुरुआत एक जनवरी से होती है और 31 दिसंबर को खत्म होता है.

नए साल की शुरुआत मुहर्रम महीने से

वहीं, इस्लामी नव वर्ष अरबी या हिजरी नव वर्ष भी कहा जाता है. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक नए साल की शुरुआत मुहर्रम महीने से होती है और ईद-उल-अजहा साल का आखिरी महीना होता है. मुस्लिम प्रथम खलीफा हजरत उमर फारूक ने इस्लामी जीवन, परंपराओं, मानकीकृत और व्यवस्थित करने के व्यापक प्रयास के तहत 639ई. में कैलेंडर की स्थापना की थी. यह कैलेंडर अन्य धर्मों द्वारा प्रयुक्त कैलेंडर से पूरी तरह से अलग है.

कब हुई इस्लामिक कैलेंडर की शुरुआत

हजरत उमर ने कैलेंडर की शुरुआत एक महत्वपूर्ण वर्षगांठ पर की थी. इस्लामिक कैलेंडर पूरी तरह हिजरी पर आधारित है. हिजरी का आगाज उमर फारुख के दौर में हुआ. हजरत अली की राय से ये तय हुआ था. इस्लाम धर्म के आखिरी संदेश वाहक हजरत मोहम्मद साहब शहर मक्का से मदीना जाने को हिजरत कहा जाता है. इसीलिए इस समय से हिजरी सन को इस्लामी वर्ष का आरंभ माना गया. इस तरह हजरत उमर ने अली और हज़रत उस्मान गनी के सुझाव पर ही मोहर्रम को हिजरी सन का पहला महीना तय किया. जिसके बाद से दुनिया भर में मुस्लिम मोहर्रम को इस्लामी नव वर्ष की शुरुआत मानते हैं.

क्या अंतर है इस्लामिक कैलेंडर और ग्रेगोरियन कैलेंडर में?

ग्रेगोरियन कैलेंडर में नई तारीख की शुरुआत रात को 12 बजे से होती है तो इस्लामिक कैलेंडर में नई तारीख की शुरुआत शाम (सूरज डूबने के बाद, मगरिब के वक्त) से होती है. इस्लामिक कैलेंडर का नया साल 1441 हिजरी शुरू हो गया. इस्लामिक कैलेंडर चंद्र कैलेंडर के हिसाब से चलता है, हिजरी संवत में 12 चन्द्र मास होते हैं, जिसमें एक महीने में 29 और 30 दिन पड़ते हैं. इस तरह एक साल में करीब 354 दिन होते हैं. इसलिए यह सौर ग्रेगोरियन कैलेंडर से 11 दिन छोटा हो जाता है.

इस्लाम का पहला महीना मुहर्रम

इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक नए साल की शुरुआत मोहर्रम के महीने से होती है. मुसलमानों के लिए मुहर्रम एक पवित्र महीना, जो शोक और मुसलमानों के लिए आत्मचिंतन का भी महीना माना जाता है. इस्लाम के आखरी पैंगबर मोहम्मद साहब के नवासे यानी नाती इमाम हसन, इमाम हुसैन को उनके पूरे परिवार के साथ मोहर्रम महीने की 10 तारीख को शहीद कर दिया था. 680 ईस्वी में इराक के कर्बला इस्लामिक लड़ाई हुई थी, जिसमें इमाम हुसैन को शहीद कर दिया गया था. इसलिए दुनिया भर के मुसलमान मुहर्रम के पूरे महीने को प्रार्थना और परिवार के साथ समय बिताकर मनाते हैं.

मुहर्रम को कैसे मनाते हैं शिया और सुन्नी?

मुहर्रम को इस्लाम के दो प्रमुख धार्मिक संप्रदाय इस्लाम के पहले पहले महीने को अलग-अलग तरीके से मनाते हैं. शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच मतभेद भी है. इमाम हुसैन की शहादत की वजह से मुहर्रम को शोक महीने के तौर पर मनाया जाता है. शिया मुसलमान 10 दिनों का शोक मनाते हैं,जिसका समापन 10वें दिन अल-हुसैन की मृत्यु पर शोक मनाने के लिए आशूरा के साथ होता है. कुछ शिया मुसलमान उस दिन शोक जुलूस में भाग लेते हैं. हालांकि, कुछ सुन्नी मुसलमान उपवास और प्रार्थना के साथ आशूरा भी मनाते हैं, लेकिन वे ऐसा मदीना में मुहम्मद द्वारा किए गए उपवास के सम्मान में करते हैं.

नबी के नवासे इमाम हसन और हुसैन की शहादत की वजह से मुहर्रम को मुसलमान गमी का महीना मानता है. इसीलिए नए साल के दस्तक के साथ जश्न नहीं मनाते हैं. मुहर्रम तड़क-भड़क (या आतिशबाजी से भरी) मौज-मस्ती का समय नहीं है. इसीलिए इस्लामिक नए साल पर बधाई देने को शिया मुस्लिम गलत मानते हैं, लेकिन कुछ सुन्नी मुस्लिमों में जरूर नए साल पर मुबारकबाद देने का सिलसिला शुरू हुआ है. ग्रेगोरियन कैलेंडर की एक जनवरी की तरह नए साल की जश्न इस्लाम में नहीं है, जिसके चलते मुसलमान नए साल पर हैप्पी न्यू ईयर नहीं कहते हैं.

इस्लामिक कैलेंडर के 12 महीने

इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक साल में 12 महीने होते हैं, जिसमें पहला महीना मुहर्रम का है. इसके बाद दूसरा महीना सफर, तीसरा रबीउल-अव्वल, चौथा महीना रबीउल आखिर. पांचवा महीना जुमादिल-अव्वल, छठा महीना जुमादिल-आखिर, सातवां महीना रज्जब , आठवां महीना शाअबान और नवां महीना रमज़ान का है जबकि दसवां महीना शव्वाल, 11 वां महीना जिल काअदह और 12वां महीना जिल हिज्जा का है.

पंडित जुगनू शर्मा
मुज़फ्फरनगर

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