कानपुर में बना देसी ‘हृदयंत्र’; भेड़ में किया जाएगा पहला परीक्षण
हार्ट फेल के गंभीर मरीजों को अक्सर डोनर हार्ट का इंतजार करना पड़ता है। ब-मुश्किल किसी को कभी डोनर मिल पाता होगा। कई बार समय पर डोनर नहीं मिलने से भी मरीज की जान भी चली जाती है।
इसी चुनौती को देखते हुए आईआईटी कानपुर के गंगवार स्कूल ऑफ मेडिकल साइंस एंड टेक्नोलॉजी की रिसर्च टीम ने एक अनोखा उपकरण तैयार किया है। इसका नाम दिया गया है ‘हृदयंत्र’। यह डिवाइस लेफ्ट वेंट्रिक्यूलर असिस्ट डिवाइस (लवाद) की तरह काम करेगा और हार्ट के अंदर लगकर ब्लड पंपिंग में मदद करेगा।
हृदयंत्र’ असल में एक मैकेनिकल पंप है, जिसे मरीज के हृदय के लेफ्ट वेंट्रिक्यूल में प्रत्यारोपित किया जाएगा। हार्ट फेल की स्थिति में जब हृदय पर्याप्त मात्रा में खून पंप नहीं कर पाता, तब यह डिवाइस उस कमी को पूरा करेगा। इससे मरीज को डोनर हार्ट के बिना ही जीवनदान मिल सकेगा।
7 से 8 विशेषज्ञों की टीम ने किया तैयार
यह डिवाइस हृदयंत्र टीम ने तैयार किया है, जिसमें 7 से 8 विशेषज्ञ की एक टीम शामिल हैं। टीम का कहना है कि अभी यह प्रोटोटाइप स्टेज पर है और अगले दो महीने में इसका एनिमल ट्रायल भेड़ों पर किया जाएगा। अगर ट्रायल सफल रहता है तो आने वाले वर्षों में यह तकनीक इंसानों के लिए भी उपयोगी साबित होगी।
शोधकर्ताओं अभिषेक कुमार ने बताया कि अनुमान है कि सभी ट्रायल्स और अनुमोदन प्रक्रिया पूरी होने के बाद यह डिवाइस अगले 4 साल में बाजार में उपलब्ध हो सकेगा। इससे हजारों मरीजों को नया जीवन मिलेगा जिन्हें हार्ट ट्रांसप्लांट के लिए डोनर का इंतजार करना पड़ता है।
ऐसे साबित होगा खास
हार्ट फेल होने पर तुरंत जीवनरक्षक साबित होगा।
महंगे विदेशी उपकरणों पर निर्भरता कम होगी।
भारत में मरीजों को समय पर सस्ती और आधुनिक चिकित्सा सुविधा मिलेगी।
मेडिकल टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बड़ा कदम है।
उम्मीद की नई रोशनी जागी है
शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर यह तकनीक सफल रहती है तो भारत में हार्ट फेल मरीजों के इलाज की तस्वीर बदल जाएगी। मरीजों को अब लंबे समय तक डोनर का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। आईआईटी कानपुर की यह उपलब्धि मेडिकल साइंस की दुनिया में एक नया इतिहास लिख सकती है।


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