लाला लाजपत राय स्मारक मेडिकल कॉलेज मेरठ पास पश्चिमी उत्तर प्रदेश का काफ़ी पुराना चिकित्सालय है जो कई वर्षों से जनहित व छात्र हित में लगातार कार्य कर रहा है। इसी क्रम में लाला लाजपत राय स्मारक मेडिकल कॉलेज, मेरठ के प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग में में दुर्लभ संयुक्त जुड़वां शिशुओं का सफल प्रसव किया गया।
बागपत से 24 वर्षीय प्रथमगर्भा महिला को समय से पूर्व प्रसव पीड़ा (Preterm Labour) के कारण मेडिकल कॉलेज, मेरठ में स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की आचार्या डॉ. रचना चौधरी के अधीन भर्ती किया गया।

अल्ट्रासाउंड जाँच डॉ. यास्मीन उस्मानी, आचार्या एवं विभागाध्यक्ष, रेडियोलॉजी द्वारा की गई, जिसमें संयुक्त जुड़वां (Conjoined Twins) गर्भ की पुष्टि हुई। दोनों भ्रूणों का वक्ष एवं उदर गुहा संयुक्त थी तथा उन्होंने यकृत (Liver) और हृदय (Heart) जैसे आंतरिक अंग साझा किए हुए थे। विस्तृत निदान हेतु भ्रूण की एम.आर.आई. जाँच भी करायी गई।

स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, 4 अगस्त को डॉ. रचना चौधरी के नेतृत्व में आपातकालीन सिज़ेरियन सेक्शन किया गया।
ऑपरेशन में 2 किलोग्राम संयुक्त भार के समयपूर्व (Preterm) दो नवजात शिशुओं का जन्म हुआ, जिनका वक्ष एवं उदर संयुक्त था, जैसा कि अल्ट्रासाउंड में पूर्वानुमानित था।

दोनों शिशुओं को तत्काल नवजात शिशु विभाग (Nursery) में डॉ. अनुपमा वर्मा की देखरेख में रखा गया है।


संयुक्त जुड़वां बच्चों के बारे में जानकारी

संयुक्त जुड़वां (Conjoined Twins) वे शिशु होते हैं जो शारीरिक रूप से एक-दूसरे से जुड़े हुए पैदा होते हैं।

यह स्थिति अत्यंत दुर्लभ है — लगभग 50,000 से 1,00,000 जन्मों में से केवल 1 में होती है।

यह तब होता है जब गर्भावस्था के शुरुआती चरण में भ्रूण का विभाजन अधूरा रह जाता है और दो अलग-अलग शिशु पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाते।

अधिकांश संयुक्त जुड़वां शिशु मृत-जन्म (Stillbirth) होते हैं या जन्म के तुरंत बाद जीवित नहीं रह पाते।

जो जीवित रहते हैं, वे प्रायः शरीर के किसी हिस्से — जैसे छाती, पेट या श्रोणि (Pelvis) — से जुड़े होते हैं और कभी-कभी आंतरिक अंग भी साझा करते हैं।

थोराको-ओंफालोफेगस (Thoraco-Omphalophagus) प्रकार सबसे सामान्य है, जिसमें शिशुओं की छाती और पेट आपस में जुड़े होते हैं तथा वे हृदय, यकृत और पाचन तंत्र के अंग साझा कर सकते हैं।

यदि संभव हो, तो ऐसे जुड़वां बच्चों को शल्यक्रिया (Surgery) द्वारा अलग किया जा सकता है, लेकिन सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वे किस हिस्से से जुड़े हैं और कौन से अंग साझा कर रहे हैं।

उपरोक्त सफल दुर्लभ संयुक्त जुड़वां शिशुओं का सफल प्रसव किये जाने हेतु प्राचार्य डॉ आर सी गुप्ता ने स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग को शुभकामनाएँ दी।

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