

भोरमदेव मंदिर, जिसे “छत्तीसगढ़ का खजुराहो” भी कहा जाता है, 11वीं शताब्दी में बनाया गया था और यह भगवान शिव को समर्पित है। इसके अलावा, भोरमदेव अभयारण्य भी वन्यजीवों के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जो कान्हा राष्ट्रीय उद्यान और अचानकमार अभयारण्य के बीच एक कड़ी का काम करता है.भोरमदेव मंदिरःयह मंदिर कवर्धा से 18 किलोमीटर दूर चौरागाँव में स्थित है.यह नागर शैली में बना एक सुंदर मंदिर है, जिसमें खजुराहो मंदिरों की झलक दिखाई देती है.मंदिर की दीवारों पर कामुक मूर्तियां और अन्य देवी-देवताओं की आकृतियां बनी हुई हैं.यह मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर बना है और इसमें तीन तरफ से प्रवेश किया जा सकता है.मंदिर का मुख पूर्व की ओर है.भोरमदेव अभयारण्य 2001 में अधिसूचित किया गया था.यह अभयारण्य कान्हा राष्ट्रीय उद्यान और अचानकमार अभयारण्य के बीच वन्यजीवों के आवागमन के लिए एक महत्वपूर्ण गलियारा है.
रिपोर्ट : उमेश दिवाकर
