उत्तर प्रदेश के किसान अब पारंपरिक खेती के साथ-साथ स्मार्ट खेती की ओर बढ़ रहे हैं। बदलते मौसम, सीमित संसाधनों और बढ़ती जनसंख्या के बीच आधुनिक तकनीकों को अपनाना अब समय की आवश्यकता बन गया है।

स्मार्ट खेती का तात्पर्य है — खेती में डिजिटल टेक्नोलॉजी, जैसे कि सेंसर, ड्रोन, मोबाइल ऐप, मौसम पूर्वानुमान और डेटा एनालिटिक्स का उपयोग कर उत्पादन में बढ़ोतरी और लागत में कमी लाना। इससे न केवल किसानों की आमदनी बढ़ेगी, बल्कि जल, मिट्टी और पर्यावरण का संरक्षण भी सुनिश्चित होगा।

डिजिटल तकनीक से बदलेगी कृषि की तस्वीर

किसानों को मोबाइल पर ही मौसम की जानकारी, मंडी भाव, बीज, खाद और कीटनाशकों की उपलब्धता की सूचना अब आसानी से प्राप्त हो रही है। केंद्र सरकार की योजनाएँ जैसे ई-नाम, पीएम किसान सम्मान निधि, डिजिटल कृषि मिशन, तथा राज्य सरकार की विभिन्न योजनाएं किसानों को तकनीक से जोड़ने में मदद कर रही हैं।

स्थानीय स्तर पर भी हो रहा नवाचार

उत्तर प्रदेश में कई किसान अब ड्रिप सिंचाई, मल्चिंग तकनीक, जैविक खेती, और फसल चक्रीकरण जैसे उपाय अपनाकर अपने खेतों से अधिक उत्पादन ले रहे हैं। कृषि विभाग द्वारा समय-समय पर आयोजित किए जा रहे प्रशिक्षण शिविरों, जागरूकता कार्यक्रमों और प्रदर्शन प्लॉट्स से किसानों में नई तकनीकों के प्रति उत्साह बढ़ा है।

कुछ चुनौतियाँ अभी बाकी हैं

ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल उपकरणों की लागत, इंटरनेट कनेक्टिविटी की कमी और तकनीकी जानकारी का अभाव अभी भी स्मार्ट खेती को व्यापक रूप से लागू करने में रुकावट बन रहे हैं। इसके समाधान हेतु सरकार, किसान संगठनों, निजी कंपनियों और स्वयंसेवी संस्थाओं को मिलकर कार्य करना होगा।

निष्कर्ष:

यदि आने वाले वर्षों में हमें खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करनी है, तो खेती को स्मार्ट, पर्यावरण-सम्मत और लाभकारी बनाना अनिवार्य है। स्मार्ट खेती सिर्फ तकनीक नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की आधारशिला है।

🖋️ :
श्याम सिंह कुशवाहा
उत्तर प्रदेश कृषि छात्र संघ (UPASO), जिला अध्यक्ष, प्रयागराज उत्तरप्रदेश

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