H-1B वीज़ा पर आगे बात करने से पहले ट्रंप के दो और ऑफर जान लीजिए. अमेरिकी नागरिकता के लिए ट्रंप अब $1 मिलियन का “गोल्ड कार्ड” वीजा देने वाले हैं.

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीज़ा को लेकर एक फैसला लिया है. ये फैसला इतना बड़ा है कि अमेरिका के साथ-साथ भारत और चीन के हाई स्किल्ड लोग भी निराश हैं. ये फैसला ट्रंप ने तब किया है, जब प्रथम महिला मेलानिया ट्रंप, पूर्व मेलानिया नॉस, को अक्टूबर 1996 में एक मॉडल के रूप में काम करने के लिए H-1B कार्य वीज़ा प्रदान किया गया था. उनका जन्म स्लोवेनिया में हुआ था. हाई स्किल्ड विदेशी वर्कर और निवेशकों के लिए अमेरिकी वीजा प्रणाली को फिर से आकार देने की कोशिश करते हुए, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को एक घोषणा पर हस्ताक्षर किए, जो H-1B वीज़ा आवेदनों के लिए एक नया वार्षिक $100,000 शुल्क लगाएगा. मतलब H-1B वीज़ा के लिए हर साल $100,000 देना होगा. रुपये में समझें तो करीब 80 लाख रुपये. अब तक H-1B वीज़ा आवेदनों के लिए अमेरिकी कंपनियां ही पेमेंट करती थीं, अब ट्रंप के इस नये आदेश से उनकी टेंशन भी बढ़ गई है.
ट्रंप के दो और ऑफर

H-1B वीज़ा पर आगे बात करने से पहले ट्रंप के दो और ऑफर जान लीजिए. अमेरिकी नागरिकता के लिए ट्रंप अब $1 मिलियन का “गोल्ड कार्ड” वीजा देने वाले हैं. ट्रंप प्लैटिनम कार्ड” $50 लाख के योगदान पर उपलब्ध होगा और इससे विदेशियों को गैर-अमेरिकी आय पर अमेरिकी करों के बिना 270 दिन तक अमेरिका में रहने की अनुमति मिलेगी. ट्रंप को इन मनमाने फैसलों के लिए हो सकता है अमेरिकी अदालतों से भी टकराना पड़े, क्योंकि राष्ट्रपति अपने अधिकारों से आगे बढ़कर फैसले ले रहे हैं. उन्होंने ये फैसले लेने के लिए कांग्रेस को दरकिनार किया है. यदि ये कार्य कानूनी रूप से टिकते हैं, तो ये 1990 में कांग्रेस द्वारा निर्मित हाई स्किल्ड और निवेशक वीज़ा की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि करेंगे.
एच-1बी वीज़ा क्या है
एच-1बी वीज़ा का उद्देश्य हाई स्किल्ड नौकरियों के लिए सर्वश्रेष्ठ और प्रतिभाशाली विदेशियों को लाना है, जिन्हें तकनीकी कंपनियों के Qualified अमेरिकी नागरिकों और स्थायी निवासियों से भरने में कठिनाई होती है. H-1B कार्यक्रम 1990 में उन लोगों के लिए बनाया गया था जिनके पास ऐसे क्षेत्रों में स्नातक या उच्चतर डिग्री है जहां नौकरियां भरना मुश्किल माना जाता है, खासकर साइंस, टेक, इंजीनियरिंग और मैथ्स. आलोचकों का कहना है कि यह कंपनियों को कम लेबर सुरक्षा के साथ कम वेतन देने की अनुमति देता है. ऐतिहासिक रूप से, ये वीज़ा – प्रति वर्ष 85,000 – लॉटरी प्रणाली के माध्यम से दिए जाते रहे हैं. ये वीजा तीन साल के लिए वैध होते हैं और इन्हें अगले तीन साल के लिए नवीनीकृत किया जा सकता है. अगर कोई कंपनी किसी कर्मचारी को ग्रीन कार्ड के लिए प्रायोजित करती है, तो स्थायी निवास की अनुमति मिलने तक वीजा का नवीनीकरण किया जा सकता है.
एच-1बी वीज़ा में क्यों बदलाव

ट्रंप की टीम का मानना है कि ये वीजा कार्यक्रम विदेशी वर्करों के एक पाइपलाइन में बदल गया है जो अक्सर सालाना केवल $60,000 पर काम करने को इच्छुक होते हैं. यह यू.एस. टेक वर्करों को सामान्यतः भुगतान की जाने वाली $100,000-plus की सैलरी से काफी कम है. शुक्रवार को ट्रंप ने जोर देकर कहा कि टेक उद्योग इस कदम का विरोध नहीं करेगा. “मुझे लगता है कि वे बहुत खुश होने वाले हैं,” अब तक अमेजन, एप्पल, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और मेटा सहित बड़ी तकनीकी कंपनियों ने इस पर कोई रिएक्शन नहीं दिया है. जाहिर है वो इससे बहुत खुश तो नजर नहीं आ रहे.
व्हाइट हाउस के स्टाफ सचिव विल शार्फ ने कहा कि H1B गैर-आप्रवासी वीज़ा कार्यक्रम देश की वर्तमान इमिग्रेशन सिस्टम में “सबसे अधिक दुरुपयोग की जाने वाली वीज़ा” प्रणालियों में से एक है, और यह उन हाई स्किल्ड वर्कर्स को अमेरिका में आने की अनुमति देता है, जो उन क्षेत्रों में काम करते हैं जहां अमेरिकी काम नहीं करते हैं.
अमेरिका के मंत्री लुट्निक ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, “अब आप ट्रेनी को H-1B वीज़ा नहीं देंगे. अब यह आर्थिक रूप से लाभदायक नहीं है. अगर आप लोगों को प्रशिक्षित करने जा रहे हैं, तो आप अमेरिकियों को प्रशिक्षित करें. अगर आपके पास कोई बहुत कुशल इंजीनियर हैं और आप उसे लाना चाहते हैं … तो आप अपने H-1B वीज़ा के लिए सालाना $100,000 का भुगतान कर सकते हैं.”
भारत पर क्या पड़ेगा असर
प्यू रिसर्च के आंकड़ों के अनुसार, 2023 में स्वीकृत कुल एच1-बी वीज़ा में से लगभग 73 प्रतिशत भारत में जन्मे श्रमिकों को मिले, इसके बाद 12 प्रतिशत के साथ चीन का स्थान रहा. इसकी मुख्य वजह स्वीकृतियों में भारी देरी और भारत से कुशल प्रवासियों की बड़ी संख्या थी. अगस्त में, होमलैंड सुरक्षा विभाग ने “भारित चयन प्रक्रिया” वाली लॉटरी व्यवस्था को समाप्त करके मौजूदा प्रणाली में बदलाव का प्रस्ताव रखा था.

एच1बी वीज़ा पर 1,00,000 अमेरिकी डॉलर के वार्षिक शुल्क पर पूर्व सलाहकार अजय भुटोरिया ने कहा, “स्टार्टअप कंपनियों को नियुक्ति संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.” भुटोरिया ने चेतावनी दी कि “21 सितंबर, 2025 से प्रभावी यह 1,00,000 अमेरिकी डॉलर का एच-1बी शुल्क एक साहसिक कदम है, जो कम लागत वाले विदेशी वर्कर पर निर्भरता कम करके, अमेरिकी प्रतिभाओं के लिए उचित वेतन और अवसर सुनिश्चित करके, साथ ही नवाचार को बढ़ावा देकर अमेरिकी नागरिकों, वरिष्ठ आईटी कर्मचारियों और नए कॉलेज स्नातकों का उत्थान कर सकता है. ” इसके अलावा, फाउंडेशन ऑफ इंडिया एंड इंडियन डायस्पोरा स्टडीज (FIIDS) के खावंडेराव ने इस फैसले को “दुर्भाग्यपूर्ण” बताया और कहा कि इसका अमेरिकी तकनीकी उद्योग पर “बेहद नकारात्मक” प्रभाव पड़ सकता है. “H1B के लिए 100,000 का शुल्क एक बेहद दुर्भाग्यपूर्ण नीति है, जिसका व्यवसायों, खासकर सॉफ्टवेयर/तकनीकी उद्योग, और अमेरिका में शिक्षित STEM प्रतिभाओं पर भारी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, जो पहले से ही AI और टैरिफ के नकारात्मक प्रभाव से जूझ रहे हैं. हमें प्रतिभाओं की कमी और उनके नकारात्मक प्रभावों के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है, खासकर स्टार्टअप्स और छोटी तकनीकी कंपनियों पर, जिससे उनके लिए नवाचार करना और प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल हो जाता है.”
