srael Gaza War: राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने एक बार फिर इजराइल के साथ खड़े रहने का फैसला किया है जबकि दूसरी तरफ इजरायल ने पूरे गाजा शहर पर कब्जा करने के लिए अपने सैन्य आक्रमण को तेज कर दिया है.

अमेरिका ने गुरुवार, 18 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के उस प्रस्ताव पर वीटो कर दिया, जिसमें गाजा में तत्काल और स्थायी युद्धविराम की मांग की गई थी. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने एक बार फिर इजराइल के साथ खड़े रहने का फैसला किया है जबकि दूसरी तरफ इजरायल ने पूरे गाजा शहर पर कब्जा करने के लिए अपने सैन्य आक्रमण को तेज कर दिया है.

न्यूज एजेंसी ANI के अनुसार UN सुरक्षा परिषद के 10 निर्वाचित सदस्यों ने यह मसौदा पेश किया था. इसमें 5 स्थायी सदस्य हैं. यानी कुल 15, इनमें में अमेरिका को छोड़कर सभी 14 सदस्यों ने प्रस्ताव को समर्थन दिया. इस प्रस्ताव में “गाजा में तत्काल, बिना शर्त और स्थायी युद्धविराम जिसका सभी पक्ष सम्मान करें”, हमास और अन्य समूहों द्वारा रखे गए सभी बंधकों की रिहाई और मानवीय सहायता पर प्रतिबंध हटाने का आह्वान किया गया था.

नोट-  वीटो का अर्थ है किसी प्रस्ताव, कानून या निर्णय को रोकने या अस्वीकार करने का अधिकार है. वीटो परम शक्ति की तरह है, यह हर हामी पर भारी होती है. UN सुरक्षा परिषद में सभी 5 स्थायी सदस्यों के पास वीटो की शक्ति है. कोई प्रस्ताव तभी पास होता है जब सभी उसपर सहमत होते हैं और कोई वीटो नहीं करता. 

अल जजीरा की रिपोर्ट के अनुसार, मिडिल ईस्ट में अमेरिकी उप विशेष दूत मॉर्गन ऑर्टागस ने वाशिंगटन के वीटो का बचाव करते हुए कहा, “इस प्रस्ताव पर अमेरिका का विरोध कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी. यह (प्रस्ताव) हमास की निंदा करने या इजरायल के खुद की रक्षा करने के अधिकार को पहचानने में विफल है, और यह हमास को लाभ पहुंचाने वाले झूठे नैरेटिव को गलत तरीके से वैध बनाता है, जिन्हें दुर्भाग्य से इस परिषद में जगह मिली है.”

अमेरिका के इस वीटो पर फिलिस्तीनी और अरब प्रतिनिधियों ने तीखी आलोचना की. अल जजीरा की रिपोर्ट के अनुसार, फिलिस्तीनी दूत रियाद मंसूर ने कहा कि अमेरिका के इस फैसले से पता चलता है कि परिषद की “चुप्पी इसकी विश्वसनीयता और अधिकार के लिए एक बड़ी कीमत है.” उन्होंने कहा कि वीटो शक्ति के उपयोग की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए “जब अत्याचार के अपराध खतरे में हों.”
 

अमेरिका के इस वीटो पर फिलिस्तीनी और अरब प्रतिनिधियों ने तीखी आलोचना की. अल जजीरा की रिपोर्ट के अनुसार, फिलिस्तीनी दूत रियाद मंसूर ने कहा कि अमेरिका के इस फैसले से पता चलता है कि परिषद की “चुप्पी इसकी विश्वसनीयता और अधिकार के लिए एक बड़ी कीमत है.” उन्होंने कहा कि वीटो शक्ति के उपयोग की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए “जब अत्याचार के अपराध खतरे में हों.”

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