
*राजनांदगांव, 22 /06/ 2025:*-धान की बुवाई का समय नज़दीक है, लेकिन ज़िले के किसान एक बार फिर खाद संकट से जूझ रहे हैं। सरकारी वितरण केंद्रों में किसानों को घंटों कतार में खड़े रहने के बावजूद खाली हाथ लौटना पड़ रहा है। स्थिति इतनी गंभीर है कि कई गांवों में किसानों को निर्धारित मात्रा में यूरिया या डीएपी नहीं मिल पा रही है। लेकिन सवाल यह है कि जब सरकारी केंद्रों में खाद उपलब्ध नहीं है, तो फिर स्थानीय दुकानों में वही खाद ऊँचे दामों पर कैसे बिक रही है?किसान हितैसी होने का दवा करने वाली वर्तमान भाजपा सरकार कि जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है *किसानों की पीड़ा* :डोंगरगांव, छुरिया और खैरागढ़ ब्लॉक के दर्जनों किसानों ने बताया कि खाद लेने के लिए कई दिनों से चक्कर लगा रहे हैं। न सिर्फ खाद नहीं मिल रही, बल्कि अफसरों की अनदेखी और जवाबदेही की कमी ने हालात और बदतर बना दिए हैं। *खुलेआम कालाबाज़ारी* स्थानीय बाजारों में निजी दुकानों पर यूरिया, डीएपी और पोटाश की बोरियां खुलेआम बिक रही हैं — वो भी MRP से कहीं अधिक दामों पर। किसानों का आरोप है कि कहीं न कहीं सरकारी गोदामों से खाद चोरी-छुपे दुकानों तक पहुंचाई जा रही है।*प्रशासन की चुप्पी:* जब इस मुद्दे पर जिला कृषि अधिकारी और सहकारिता विभाग से सवाल पूछने के लिए संपर्क करने कि कोशिश कि गई लेकिन सम्पर्क नहीं हो पाया।विपक्षी दलों ने भी इसे लेकर सरकार पर निशाना साधा है। उनका कहना है कि “खाद की कमी कृत्रिम तरीके से पैदा की गई है ताकि दलालों को फायदा पहुंचाया जा सके।” *बड़ा सवाल:* जब सरकारी गोदामों में खाद की किल्लत है तो खुले बाजार में वही खाद कैसे बिक रही है?क्या खाद की आपूर्ति में भ्रष्टाचार की बू है?और अगर हां, तो जिम्मेदार कौन?किसानों की मांग:* कालाबाज़ारी करने वालों पर कड़ी कार्रवाई हो।* प्रत्येक किसान को डिजिटल टोकन के माध्यम से खाद मिले।
रिपोर्ट:- एन.के. सिन्हा
