

अंबिकापुर:- सवाल सीधा है ज़ब शासकीय भूमि पर अवैध कब्जा हो रहा था, तब प्रशासन सम्बंधित विभाग और वन अधिकारी कहाँ सो रहे थे? क्या तब उनकी ऑंखें बंद थी या जेबें खुली थीं? आज अतिक्रमण हटाने के नाम पर जे सी बी चला दी जाती है, सैकड़ों पुलिस बल तैनात होता है। लेकिन ज़ब किसी गरीब ने एक- एक ईंट जोड़कर सालों कि मेहनत से घर बनाया, तब कोई नजर क्यों नहीं आई? क्या उस वक्त अधिकारियों कि ड्यूटी नहीं थी? क्या सरकारी ज़मीन पर बिजली, पानी, सड़क, राशनकार्ड कि सुविधा अपने आप पहुंची थीं?हकीकत ये है कि ये सब मिलीभगत का नतीजा है। कुछ नोटों के बदले चुप्पी और चुप्पी के बदले तबाही। वोट कि लालच में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने अतिक्रमण को बढ़ावा दिया। ज़ब कब्ज़ा हो रहा था तब कोई धरना प्रदर्शन क्यों नहीं दिया? अब कार्रवाई हो रही है तो सिर्फ गरीबों के सपनों पर बुलडोजर चल रहा है। अगर शुरुआत में ही जिम्मेदार अधिकारी अपना काम ईमानदारी से करते तो आज किसी गरीब का आशियाना न उजड़ता। अब कार्रवाई तो हो रही है मगर सिर्फ नीचे वालों पर, ऊपर बैठकर आँखें मूँद लेने वालों पर कब होगी??
रिपोर्ट : एन के सिन्हा
