जनता के बेइंसाफी हो या अधिकारी हो या या नेता भी क्यो न हो अपनी बात रखने के लिए पत्रकारों का सहारा लेते है लेकिन पत्रकारों पर हमले होने से सभी खामोश क्यों
कोई भी प्रदेश हो पर पत्रकारों पर हमले हो कोई बात नहीं लेकिन सरकार ने साबित कर दिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ अब पूरी तरह दरक कर चुका है पत्रकारों को अपनी जान हथेली पर रखकर सच लिखता है और अगर किसी ने भ्रष्टाचार या सत्ता पर या अधिकारियों के खिलाफ आवाज उठाई तो उसके ऊपर हमला तय है या उसकी लाश मिलना तय है लेकिन इससे सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता आज जो भी पत्रकार सत्ता हो या अधिकारी हो या माफियाओं के खिलाफ बोलने की हिम्मत करता है उसकी आवाज़ दबाने की कोशिश की जाती है या हमेशा के लिए आवाज़ खामोश कर दी जाती है आम जनता तक की आवाज़ का काम पत्रकार ही करते हैं लेकिन आश्चर्यजनक रूप से पत्रकारों की सुरक्षा पर सरकार को कोई चिंता नहीं है देखा जाए तो आम जनता ही नहीं राजनीतिक दल और अधिकारियों को भी अपनी बात आगे रखने के लिए पत्रकारों की जरूरत पड़ती है लेकिन किसी को भी पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की फुर्सत नहीं सरकार को चाहिए कि पत्रकारों की सुरक्षा के लिए सख्त कानून बनाएं अगर वाकई लोकतंत्र मे पत्रकारिता को महत्व दिया जाता है तो पत्रकारों की सुरक्षा की प्राथमिकता होनी चाहिए लेकिन शायद सरकार को जरुरत नहीं लगती और सरकार आंखें मूंद बैठी रहेगी तब तक लोकतंत्र का चौथा स्तंभ सिर्फ नाम का बना रहेगा सभी पत्रकारों भाईयों को और सभी संगठनों को चाहिए एक जुट होकर दिल्ली में आकर भूख-हड़ताल पर बैठना चाहिए भूख-हड़ताल पर बैठने की नौबत आ गई है अपने हक के करना जरूरी है

दिल्ली
